Sunday, July 1, 2007

ये गर्व भरा मस्तक मेरा...

ये गर्व भरा मस्तक मेरा,
प्रभु चरण धूल तक झुकने दे,
अहंकार, विकार भरे मन को,
निज नाम की माला जपने दे।

मैं मन के मैल को धो ना सका,
ये जीवन तेरा हो ना सका,
मैं प्रेमी हूँ, इतना ना झुका,
गिर भी जो पडूँ, तो उठने दे।

मैं ज्ञान की बातों में खोया,
और कर्म-हीन पढ़ कर सोया,
जब आँख खुली तो मन रोया,
जग सोये, मुझको जगने दे।

जैसा हूँ मैं खोटा या खरा,
निर्दोष शरण में आ तो गया,
एक बार ये कह दे खाली जा,
या प्रीत की रीत छलकने दे।

ये गर्व भरा मस्तक मेरा,
प्रभु चरण धूल तक झुकने दे,
अहंकार, विकार भरे मन को,
निज नाम की माला जपने दे।