Saturday, June 30, 2007

जैसे सूरज की गर्मी से ..

जैसे सूरज की गर्मी से जलते हुए तन को
मिल जाए तरूवर की छाया,
ऐसा ही सुख मेरे मन को मिला हैं
मैं जब से शरण तेरी आया, मेरे राम!

भटका हुआ मेरा मन था कोई,
मिल ना रहा था सहारा,
लहरों से लड़ती हुई नाव को
जैसे मिल ना रहा हो किनारा,
उस लड़खड़ाती हुई नाव को
जो किसी ने किनारा दिखाया,
ऐसा ही सुख मेरे मन को मिला हैं
मैं जब से शरण तेरी आया, मेरे राम!

शीतल बने आग चंदन के जैसी,
राघव कृपा हो जो तेरी,
उजियाली पूनम की हो जाए रातें,
जो थी अमावास अंधेरी,
युग युग से प्यासी मरुभूमी में
जैसे सावन का संदेस पाया,
ऐसा ही सुख मेरे मन को मिला हैं
मैं जब से शरण तेरी आया, मेरे राम!

जिस राह की मंज़िल तेरा मिलन हो,
उस पैर क़दम मैं बढ़ाऊँ,
फूलों में खारों में, पत-झाड़ बहारों में,
मैं ना कभी डगमगाऊं,
पानी के प्यासे को तकदीर ने
जैसे जी भर के अमृत पिलाया,
ऐसा ही सुख मेरे मन को मिला हैं
मैं जब से शरण तेरी आया, मेरे राम !

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