हरी भरी वसुंधरा पर नीला नीला ये गगन,
के जिसपे बादलों की पालकी उड़ा रहा पवन,
दिशाएं देखो रंग भरी चमक रहीं उमंग भरी,
ये किसने फूल फूल से किया सिंगार है,
ये कौन चित्रकार है ये कौन चित्रकार...
कुदरत की इस पवित्रता को तुम निहार लो,
इनके गुणों को अपने मन में तुम उतार लो,
चमका दो आज लालीमा अपने ललाट की,
कण कण से झाँकती तुम्छें छ्बी विराट की,
अपनी तो आँख एक है इसकी हज़ार है,
ये कौन चित्रकार है ये कौन चित्रकार !
तपस्वियों सी हैं अटल ये पर्वतों की चोटियाँ,
ये बर्फ़ की घुमावदार घेरदार घाटियाँ,
ध्वज़ा से ये खड़े हुए हैं वृक्ष देवदार के,
गालीचे ये गुलाब के बागीचे ये बहार के,
ये किस कवि की कल्पना का चमत्कार है,
ये कौन चित्रकार है ये कौन चित्रकार
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